Tuesday, July 8, 2014

कई बार लिख कर भी ,खुद से नाराज हो मिटा देता हूँ - अजय शुक्ला

 खुद से ....पिता से ......पत्नी से ......और बच्चों से

 कई बार लिख कर भी ,खुद से नाराज हो मिटा देता हूँ  
 मोहब्बत के खत ,तेरे हर्फ़ ओ अल्फ़ाज़ मे वो प्यार नहीं

1: जब भी अपनी रूह से बात करने का ख्याल भी आया
   उसे जन्नत मे ,तेरे जिस्म मे बहुत ही दूर बैठा पाया
   किसी ने कहा था ,सफेद कागज मे अश्क या लहू से लिखना
   स्याहियों के रंग अक्सर दिल को रुलाने का काम करते हैं
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2: उम्रदराज हूँ ,पर वालिद तुमसे तो छोटा ही हूँ हमेशा
   चिपक कर कह देता तुमसे ना कहने वाली भी सारी बात
   समझदार हो गये उम्र के पन्ने ,आंसू लिखने भी नहीं देते
   क्या तुमसे भी मोहब्बत मे कहीं शब्दों की जरूरत होती है
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3: और तुम ,आईं और चुपके से शामिल हो गयीं मेरे वजूद पर
   तुमने कब लिखा कि तुम्हे प्यार है मेरी अकड़ या नखरों से
   पर हर पल दिल को हौले से बता देती मुझे तेरी या तुझे मेरी
   फिक्र भी है और आदत भी, और बस ये ही तो मोहब्बत है
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4: तू गोद मे रह कर अपने होंठों से मेरे माथे या गालों पर
   जाने किस जुबां मे जो अनकही मीठी सी कहानी लिख देता है
   वो लफ्ज़ खत मे लिखें कैसे जो बस अहसास है तेरे मेरे बीच
   प्यार तुझे भी मालूम है बस बेवजह शब्दों का सहारा नहीं लेता है
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   जो खुद से नाराज हूँ लिख कर मिटा देने से ,बुरा क्या है
   प्यार को कह कर के प्यार किया, हाँ उसमे वो प्यार नहीं
  

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