Sunday, July 27, 2014

ख़ामोशी कभी तू भी बोल ज़रा , - "मंजु अग्नि "

ख़ामोशी कभी तू भी बोल ज़रा ,
तन्हाई का घूँघट खोल ज़रा ,
क्यों दिन में सपने बुनता है ,
क्यों दिल की हरदम सुनता है ,
यहाँ अपना पराया कोई नहीं ,
क्यों रिश्ते हरदम बुनता है ,
ख़ामोशी कभी तू भी बोल ज़रा !


याद आएँगी सब भूली बातें ,
चुक जाएँगी जब मुलाकातें ,
दिल की गलियों को खोल ज़रा ,
एहसासों की मिट्टी में फिर से ,
ज़ज़्बातों का रस तू घोल ज़रा ,
ख़ामोशी कभी तू भी बोल ज़रा !

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