Sunday, July 27, 2014

जिन्दगी, तू क्यों चली आती है - अनिल सिन्दूर

जिन्दगी,
तू क्यों चली आती है
बार-बार
अपने वो दुःख लेकर , जो तेरे अज़ीज़ हैं
और जिन्हें नहीं छोड़ना चाहती तू भी
आसानी से

तू सहेजे क्यों नहीं रखती उन्हें
ये दुःख ही तो पहचान हैं तेरी
और संबल, इकतरफ़ा जूझने की
उनके जाने के बाद , नहीं रहेगा यदि
वजूद उनका, तो तेरा भी !

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