Tuesday, August 26, 2014

सूरज को फांसी - शरद कोकास

बैंजामिन मोलाइस , अफ्रीका के क्रन्तिकारी कवि थे जिन्हें फांसी दी गयी थी ! उनके सम्मान में यह कविता शरद कोकस ने वर्ष 1989 में दी थी !

सूरज को फांसी

रात्रि के अंतिम प्रहर में
कारपेट घास पर बैठ
सूरज को फांसी देने की
योजना बनाने वालों से
इतना कहना है
एक बार वे
योजना के गर्भ में झाँककर
सूरज और जल्लाद के
संबंधों की
ख़ुफ़िया जानकारी ले लें

जल्लाद दूर गाँव से बुलाया गया है
फांसी के बाद पैसों के अलावा
इंटरव्यू छापने का आश्वासन है

उन्होंने तय कर लिया है
किस तरह सूरज को बांधकर
तख़्त तक ले जाया जायेगा
चेहरा ढांकने के लिये
काले कपड़े की जरुरत होगी
ताकि उनकी नज़रों से निकलने वाली
क्रांति की चिंगारियां
किसी के दिमाग में जब्ज़ न हो

फंदे के आकार पर भी बात जारी है
ताकि सूरज की नाक
बराबर दूरी पर
दांये या बांये रह सके

सूरज से उसकी अंतिम इच्छा पूछना
योजना में शामिल नहीं है
फांसी से पूर्व की
सुरक्षा व्यवस्था के अंतर्गत
शामिल है
सूरज मुखी के पोधों को जड़ से नष्ट करना
ताकि विद्रोह अंकुरित न हो

सूरज की लाश
उसके परिजनों को सौपी जाये या नहीं
या कर दिया जाये उसका अंतिम संस्कार
सरकारी खर्चे पर
विचार इस पर भी जारी है

सूरज के आरोप पत्र में लिखा है अपराध
रोशनी और ऊष्मा के सन्दर्भ में
उसने महलों की नहीं झोपड़ों की तरफदारी की है !



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