Tuesday, August 5, 2014

कुछ भी नया नहीं ना हमारी पीडा - विशाल

कुछ भी नया नहीं
ना हमारी पीड़ा
ना शब्द
ना मौन
ना स्याह
ना कागज |

आकाश सदियों से देख रहा है
सबकुछ,
और मिट्टी आदिकाल से एक चुप माँ सी पाल रही है हमको,...
बावजूद इसके
हमें भ्रम है..
कि पीड़ा और मौन की काली जड़े
सिर्फ मेरे सीने पर उगी है,
दीमक सिर्फ मुझेमे रेंग रहा है,
सबसे विकृत सिर्फ मेरा सच है,
रात सिर्फ मैने कपडे नोचे थे अपनी देह से |

पर
सुर्य /अंधकार/ मृत्यु /जन्म
जैसे तमाम सत्य के साथ साथ ,
सत्य है
हमारा विलीन होना
और
फिर से उगना
इन्हीं तमाम पीड़ा / शब्द /मौन /दीमक/ स्याह और कागज लिए |

2 comments:

  1. आभारी हूँ सर बच्चे कि हिम्मत बढाई आपने

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