Thursday, August 28, 2014

स्त्री हूँ मैं खुशनसीब की मैं रचूंगी - राकेश मूथा

स्त्री हूँ मैं
खुशनसीब
की मैं रचूंगी
अपने में
अपने से
प्रतिरूप
अपने प्यार का .......



.............................
स्त्री हूँ में
बदनसीब
नहीं रचना चाहती
मैं
अब कोई
प्रतिरूप ..........
........................................
स्त्री हूँ मैं
हर बात
हमारे बीच
प्रतिद्वंदियों सी है
हमारा प्रेम
कहाँ..कहाँ है ??.....



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