Saturday, August 9, 2014

हम सड़क के हैं मुसाफ़िर मील के पत्थर नहीं ! - देवेन्द्र 'सफल'

हम सड़क के हैं मुसाफ़िर
मील के पत्थर नहीं !

चारणों-बन्दीजनों की भी न हम को चाह है ,
अब अकल्पित लक्ष्य अपने औ' असीमित राह  है ,
विश्व सारा घर हमारा
देखते मुड़ कर नहीं !

ऊर्ध्व-श्वासी वेदनायें ह्रदय पर कसती रहीं ,
मुक्त हो पायी न फिर भी फूल को डसती रहीं ,
बांसुरी के रस-वलय हम
बाँस वन के स्वर नहीं !

रौद्र रस की भंगिमा को और कुछ विस्तार दें ,
प्रलय-पल की सूक्तियों को और कुछ नव सार दें ,
चेतना के सूर्य उज्जवल
ठहरते क्षण भर नहीं !

सृष्टि की पीड़ा धनंजय ! मोहमय अवसाद है ,
पार्थ ! गह गांडीव शर यदि चाहता प्रतिवाद है ,
अग्री-कुल की रश्मियाँ हम
जुगनुओं के घर नहीं !


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