Saturday, August 9, 2014

एक कोना है तू मेरी बातों का - विशाल कृष्ण सिंह

दीदी
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एक कोना है तू
मेरी बातों का
मेरी जिद्द का 
लड़ाई का
गुस्से का
हक का

पर तेरे जाने के बाद
अब कोई नहीं होता
जो झट से दे दे
अपने हिस्से के जमा पैसे
मेरी छोटी छोटी चाहतों पर
घर में
मैं और माँ
कम बतियाते है
माँ जल्दी सो जाती है
और मैं देर तक दरवाजा तकता रहता हूँ
मैं जब भी तेरे घर जाता हूँ
हैरान सा देखता हूँ
कैसे पापा की नाजुक सी लड़की
बरगद बन गई है
कैसे तू सबके लिए
गहरी नदी बन जाना चाहती है
ताकि जीती रहे हर रंग की मछलियां |
मैं जानता हूँ
कि तू आज भी मुझे सुनना चाहती है
पूरा का पूरा
पर मैं ही अब शब्द खाने लगा हूँ
मैं बदला नहीं दी
बस मुझे तेरी मुस्कुराहट की फिक्र है
आज तुम सब से दूर
यहाँ कोई नहीं
तो मैंने खुद ही राखी बांध ली
और देर तक
तेरा चेहरा महसूसता रहा राखी में |

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