Thursday, August 28, 2014

स्वंय लगा कर कन्धा , अपनी अर्थी लेकर चल दूँ - डॉ. सत्यकाम पहारिया

स्वंय लगा कर कन्धा , अपनी अर्थी लेकर चल दूँ ,
पहुँचू घाट किनारे जाकर , सत्ता से जा मिल लूँ !

जीवन की यह नियति कर्म से भोगा करती ,
यह अतीत की बात सुछवि को धारण करती !

अभी हमें तपना है पावक परम-तत्व से ,
फिर मिलना है दौड़ , तभी उस नील गगन से !

प्रलयंकर हुँकार उठेगी ज्वलित चिता से ,
जल का होगा नाश , अवस्थित देह दशा से !

पवन करेगा सांय-सांय फिर चिता जलेगी ,
क्षिति तो लेगा भाग , शेष बस भस्म रहेगी !

धर्म रहेगा साथ वहां की पावन यात्रा होगी ,
एकाकी होगा जाना बस प्रभु की आस रहेगी !

आत्म-तत्व का परम तत्व से मिलना होगा ऐसे ,
एक बूँद का जलनिधि में ज्यों मिलना होगा जैसे !

जहाँ लोक आनंदमय रहना होगा अब वहां ,
फिर उतर कर इस धरा पर अब नहीं रहना यहाँ !

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