Tuesday, October 7, 2014

रेतीले दिन काटे पपिहे ने - गीता चौहान मोब. 9919086565

रेतीले दिन काटे पपिहे ने
एक नेह-बिंदु सहारे से !

स्वप्न के कपोत को पकड़ने में
श्वास-श्वास उम्र की गंवाई ,
करता गलती सौ-सौ बार वो
जिसने सौ बार कसम खाई,

क्षीण हुआ बासंती मौसम यों,
उतर जाय ऊष्मा ज्यों पारे से !

उन्मन मन खोजता फिरा नित ही
शांति -पूत भावना संजोये
घूमा मन पंथ में अकेले ही
प्रीत के अमोल बीज बोये,

अंतर्मन के भवन संजे-संवरे,
नींव सधी अश्रु सने गारे से !

एक रूप दृगों में तिरा जब से
छवि ने आकृति जब से पायी है,
बिन बोले प्रीति मुखर होती है
सपनों की बेल महमहायी है,

संबोधन ऊंचे आकाश चढ़े
चाह बंधी सिन्धु के किनारे से !

No comments:

Post a Comment