Saturday, October 18, 2014

तुम आये तो सावन आया , गये उठा तूफ़ान ! - प्रोफे. राम स्वरुप 'सिन्दूर'

तुम आये तो सावन आया , गये उठा तूफ़ान !
जल में तैरे रेगिस्तान !

कुछ कहना हो , कुछ कह जाँऊ ,
दिन-दिन-भर घर में  रह जाँऊ ,
ताज महल जैसा लगता है कलई पुता मकान !
जल में तैरे रेगिस्तान !

दर्पण देखूं , देख न पाऊँ ,
अर्थहीन गीतों को गाऊँ ,
सूरज डूबे ही  पड़  जाऊँ , सर से चादर तान !
जल में तैरे रेगिस्तान !

सोते में चौकूँ , डर जाऊँ ,
साँस  चले , लेकिन मर जाऊँ ,
सिरहाने रखने   खोजूँ , आधी रात कृपान !
जल में तैरे रेगिस्तान !

मुश्किल से हो कहीं सबेरा ,
चैन तनिक पाये जी मेरा ,
जैसे-जैसे धूप चढ़े , होता  जाऊँ नादान !
जल में तैरे रेगिस्तान !


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