Saturday, October 4, 2014

सुनो ऐ नरम दिल लड़कियों -- दिव्या शुक्ला

सुनो ऐ नरम दिल लड़कियों
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रुई के फाहों सी नरम दिल लड़कियों
जरा सा सख्त भी हो जाओ --वरना
खतम हो जाएगा तुम्हारा वज़ूद
इसी तरह दोयम दर्जे का जीवन जीती रहोगी
याद करो कभी अपने ही घर में सुना होगा न
किसी को बार बार यह कहते
अपनी इज्जत करना सीखो --
जो अपनी इज्जत नहीं करता
दुनिया उसकी परवाह नहीं करती
सुनो ऐ नरम दिल बेवकूफ लड़कियों
कितनी भोली हो तुम नहीं समझी न ?
यह शब्द यह नसीहत यह सीख कुछ भी
तुम्हारे लिए नहीं थी अरे यह सब
तुम्हारे भाइयों के लिए कहा था


भले ही कहने वाली तुम्हारी माँ ही होगी
तुम्हारी नियति तो तय ही कर दी गई थी
सदियों पहले -- वो ही दोयम दर्जे वाली
सब जानते थे आज भी उन्हें पता है
रुई हल्की सी नमी से भीग जाती है
भारी बोझिल हो जाती है ---आंसुओं से
पर वो यह कैसे भूल गए ---कभी कभी
हल्की सी चिंगारी से रुई में आग भड़क जाती है
और भस्म हो जाता है पूरा का पूरा साम्राज्य
उसी रुई से तो बना है तुम्हारा नरम दिल
पर सुनो क्यों नहीं समझती तुम
जब तक तुम खुद नहीं समझोगी
कैसे समझाओगी सबको ----
अब तो समझो ---मत बहो अंधी नदी की धार में
जिसके कगार ढह रहे हों न जाने किस खाड़ी में
ले जाकर पटक देगी तुम्हे और फिर होगा वही
अथाह सागर में विलीन हो जाओगी --
तुम्हे खुद बनाना है अपना बाँध एकजुट हो कर
तभी तो तुम्हारी उर्जा से दिपदिपायेगा --
जगमगायेगा पूरा समाज --और
फिर ऐ रुई के फाहों सी नरम दिल लड़कियों
बस तनिक सा कठोर हो जाओ ---
अपना सम्मान करना सीख लो

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