Wednesday, October 8, 2014

"मुखौटों से झाइयाँ नहीं छिपतीं - मदन कश्यप

"मुखौटों से झाइयाँ नहीं छिपतीं
पूरा का पूरा चेहरा छिप जाता है
सबको पता चल जाता है
कि सब कुछ छिपा दिया गया है
भला ऐसे छिपने-छिपाने का क्या मतलब
छिपो तो इस तरह
कि किसी को पता नहीं
चले कि तुम छिपे हुए हो
जैसे कोई छिपा होता है हवस में
तो कोई अवसरवाद में
कुछ चालाक लोग तो
विचारधारा तक में छिप जाते हैं
कोई सूचनाओं में छिप जाता है
तो कोई विश्लेषण में
कोई अज्ञान में तो कोई इच्छाओं में..."

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