Saturday, October 25, 2014

इन दिनों ना जाने क्या धंस गया है - विशाल कृष्ण

इन दिनों
ना जाने क्या धंस गया है
अचानक से
सीने के बीचों बीच
कि
एक शुन्य फैलता जा रहा है मुझमें
कि बातें तो अभी भी बहुत है
जो तुमसे कहनी है
बहुत कुछ बाकी है
जो तुम संग बांटने की चाह है
पर कोई है मुझमें
जो थक गया है
शब्दों के पीछे भाग भाग कर
जो थोडा ठहर जाना चाहता है
चुप्पियों के बीच ,
कविताएँ आँखों में रख
तुम्हें देखने की चाह
होंठों पर उगी टेढी सी लकीरें
और एक ख्वाहिश
कि किसी दिन
तुम इस सब कविताओं को पढ़ोगे,
मेरी दोस्त ,
आओ ना
पढो
मुझ में बह रही खामोश कविताओं को
कि यहाँ
सिर्फ मैं हूँ
तुम हो
कही कोई
कुछ तीसरा नहीं

No comments:

Post a Comment