Monday, October 20, 2014

उठती हो ढलती हो यूँ ही मचलती हो - नीलू 'नीलपरी'

लहरें
उठती हो ढलती हो
यूँ ही मचलती हो
सागर के दिल से उभरती
ए लहरों तुम भी मेरे जैसी हो

तूफ़ान सा उठाती
बस खुद पे इतराती
कहीं गहरी कहीं ठहरी हो
ए लहरों तुम भी मेरे जैसी हो
कहाँ है उद्गम
कहाँ है संगम
अनजान डगर पे चलती हो
ए लहरों तुम भी मेरे जैसी हो
फिर मचली इक लहर
भटक गयी अपना सफ़र
क्यूँ हो, कैसी हो तुम अशांत
ए लहरों तुम भी मेरे जैसी हो

No comments:

Post a Comment