लहरें
उठती हो ढलती हो
यूँ ही मचलती हो
सागर के दिल से उभरती
ए लहरों तुम भी मेरे जैसी हो
तूफ़ान सा उठाती
बस खुद पे इतराती
कहीं गहरी कहीं ठहरी हो
ए लहरों तुम भी मेरे जैसी हो
कहाँ है उद्गम
कहाँ है संगम
अनजान डगर पे चलती हो
ए लहरों तुम भी मेरे जैसी हो
फिर मचली इक लहर
भटक गयी अपना सफ़र
क्यूँ हो, कैसी हो तुम अशांत
ए लहरों तुम भी मेरे जैसी हो
उठती हो ढलती हो
यूँ ही मचलती हो
सागर के दिल से उभरती
ए लहरों तुम भी मेरे जैसी हो
तूफ़ान सा उठाती
बस खुद पे इतराती
कहीं गहरी कहीं ठहरी हो
ए लहरों तुम भी मेरे जैसी हो
कहाँ है उद्गम
कहाँ है संगम
अनजान डगर पे चलती हो
ए लहरों तुम भी मेरे जैसी हो
फिर मचली इक लहर
भटक गयी अपना सफ़र
क्यूँ हो, कैसी हो तुम अशांत
ए लहरों तुम भी मेरे जैसी हो
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