Thursday, October 30, 2014

होंठों पे हंसी है न तो आँखों में नमी है - प्रोफे. राम स्वरुप 'सिन्दूर'

उस शख्स की औकात में आई न कमी है !
थोड़े से वसीक़े से बड़ी बात बनी है !!

उजड़ी हुई बस्ती में तेरी याद बसी है ,
एक कालकोठरी में रौशनी-सी जली है !

उसके खुदा के बीच कोई और नहीं था ,
मुझको नज़र में उसकी इक मूरत-सी दिखी है !

हम दोनों के कलाम में इतना-सा फ़र्क है ,
मैंने ग़ज़ल कही है , ग़ज़ल तूने लिखी है !

सुर मेरा मिले कैसे , बेसुरे जहान से ,
हर साँस मेरी वीणा के सरगम में ढली है !

अए रूह मेरी ! मौत को इतना तो बता दे ,
किस सिम्त से आई थी , तू किस सिम्त चली है !

होंठों पे हंसी है न तो आँखों में नमी है ,
'सिन्दूर' की हालत न भली है , न बुरी है !

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