Monday, October 27, 2014

दो-चार बार हम जो कभी हंस-हंसा लिए ! - कुंअर बेचैन

दो-चार बार हम जो कभी हंस-हंसा लिए !
सारे  जहाँ  ने  हाथ में  पत्थर  उठा लिए !

रहते  हमारे  पास  तो  ये  टूटते  जरुर ,
अच्छा किया जो आपने सपने चुरा लिए !

सुख, बादलों में जैसे नहाती हों बिजलियाँ ,
दुःख, बिजलियों की आग में बादल नहा लिए !

जब हो सकी न बात तो हमने यही किया ,
अपनी ग़ज़ल के शेर कहीं गुनगुना लिए !

अब भी किसी दराज़ में मिल जायेंगे 'कुंअर',
वो ख़त जो तुमको दे सके लिख-लिखा लिए !

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