Friday, October 31, 2014

मेरे भव्य ड्रांइगरूम मेँ झुर्रियोँ से भरे पोपले मुँह वाले बूढ़े पिता - लवनीत सिंह

मेरे भव्य ड्रांइगरूम मेँ
झुर्रियोँ से भरे पोपले मुँह वाले
बूढ़े पिता
कहीँ भी समा नहीँ पा रहे थे
भद्र अतिथियों के सामने
मैँ नहीँ होना चाहता था लज्जित
इसीलिए मैँने उन्हेँ घर के किसी कोने मेँ छिपा दिया
मैँने मुस्कान ओढ़े अतिथियों का स्वागत किया
सजे हुए भव्य ड्रांइगरूम को
अतिथि ने प्रंशसा भरी नजरो से देखा
सामने आले मेँ रखी
सुनहरे फ्रेम मेँ जड़ी तस्वीर को देखकर
(जिसे मैँ भूलवश छिपाना भूल गया था )
अतिथि ने जिज्ञासावश पूछा
यह तस्वीर क्या आपके पिता की है ?
मैँने लगभग हकलाते हुए कहा- "हाँ"
जैसे हु-ब-हू आपकी तस्वीर हो
कितनी मिलती है आपकी शक्ल आपके पिता से
मुझे लगा मैँ भी बूढ़ा हो चुका हूँ
और आने वाली पीढ़ी मुझे भी कहीँ छिपा देना चाहती है...

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