Sunday, March 22, 2015

जैसे तुम सोच रहे साथी - विनोद श्रीवास्तव कानपूर मोब. 9648644966

गीत

जैसे तुम सोच रहे साथी
वैसे आज़ाद नहीं हैं हम

पिंजरे जैसी इस दुनिया में
पंछी जैसा ही रहना है
भरपेट मिले दाना-पानी
लेकिन मन ही मन दहना है

जैसे तुम सोच रहे साथी
वैसे संवाद नहीं हैं हम

आगे बढ़ने की कोशिश में
रिश्ते नाते सब छूट गये
तन को जितना गढ़ना चाहा
मन से उतना ही टूट गये

जैसे तुम सोच रहे साथी
वैसे आबाद नहीं हैं हम

पलकों ने लौटाये सपने
आँखें बोली अब मत आना
आना ही तो सच में आना
आकर फिर लौट नहीं जाना

जितना तुम सोच रहे साथी
उतना बरबाद नहीं हैं हम



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