Thursday, March 5, 2015

मैं गुनाहगार था न - अवज्ञा अमरजीत गुप्ता

मैं गुनाहगार था न/
यह कहकर निकाला गया/
तू सोच/
तेरे मोहल्ले में फिर मेरे चर्चे क्यों है?

झूठ मक्कारी दगा/
सबने बारी बारी ठगा/
उठा पोटली/
ले अब मैं रुख़सत हुआ/
तू सोच/
तेरा महल अब खंडहर क्यों है?
हाँ में हाँ जो मिलाता मैं/
पत्थरों को तोड़ रास्ता कैसे बनाता मैं/
तुझे तेरा महल,साजो-सामान,शागिर्द, मुबारक/
मुझे रास्तों की धूल फिर से खाने दे...

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