नीवें सब खोखली हुईं
कंगूरे आंकते रहे
घर से उठता रहा धुआं
दूर खड़े ताकते रहे !!
नीवें सब खोखली हुईं ..................
शहनाई ने करवट ली
नदिया फिर खो गई कहीं
पर्वत ने तान लिया मौन
लोग प्रश्न उछालते रहे !!
नीवें सब खोखली हुईं .........
सोचा था जीवन के तम
काटेंगें लोगों के हम
सूरज की आग लिए
हम उनके पास भी गए
लोग महज़ तापते रहे
दूर-दूर भागते रहे !!
नीवें सब खोखली हुईं ................
फुनगी पर आ बैठी शाम
लोगों के थे अपने काम
हीरे सा तन लिए हुए
दर्द से कराहते रहे !!
नीवें सब खोखली हुईं ..................
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