“पसंद अपनी-अपनी” - रेखा जोशी, फरीदाबाद
“पसंद अपनी-अपनी”
मत देखो ख़्वाब
जो कभी
पूरे हो नही सकते
कितने भी सुन्दर हों
रेत के महल
आखिर
इक दिन तो
गिरना है उन्हें
कभी कभी
ज़िंदगी भी हमे
ले आती
ऐसी राह पर
जहाँ
टेकने पड़ते घुटने
वक्त के आगे
और
बस सिर्फ इंतज़ार
पड़ता है करना
न जाने कब तक
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