Sunday, March 22, 2015

पाने को प्रेम - अनिल सिन्दूर

पाने को प्रेम
जब भी
खटखटाता हूँ कुण्डी
प्रेम
खोलकर कुण्डी
चला जाता है कहीं दूर
दिखाई देती है मुझे
पीठ प्रेम की
प्रेम की पीठ !

No comments:

Post a Comment