Wednesday, June 11, 2014

मैं जानता हूँ मैं कोई अवतार नहीं हूँ ! - प्रोफे. राम स्वरुप 'सिन्दूर'

मैं जानता हूँ मैं कोई अवतार नहीं हूँ !
इस सृष्टि का सर्जक हूँ, कर्णधार नहीं हूँ !

मैं काल-सिद्ध शब्द का स्वर हूँ अनादि से ,
जड़ काल-पात्र में पड़ी झंकार नहीं हूँ !

सारा जहाँ है मुझ में , मैं सारे जहान में ,
जो ध्वंस से डरता है वो संसार नहीं हूँ !

विश्वास है मुझे , मैं पढ़ा जाउँगा सदियों ,
मैं आर्षग्रन्थ हूँ कोई अखबार नहीं हूँ !

मैं अन्तरिक्ष में भी क्षीर-सिन्धु जी सकूँ ,
मैं छोटी-सी 'डल झील' का अभिसार नहीं हूँ !

'सिन्दूर' कल था , आज है और कल भी रहेगा ,
दिखता है आँख को जो , वो आकार नहीं हूँ !

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