Sunday, June 15, 2014

तुम्हारी कब्र पर मैं फ़ातेहा पढने नहीं आया - निदा फ़ाज़ली

'फादर्स डे' पर अपने बाबू जी को याद करने का मौका मैं नहीं छोड़ पाया ! उनकी मौत के समय मैं उनके पास नहीं था ! उनकी मौत की खबर जानबूझ कर उस समय दी गयी जब अंतेष्टि हो चुकी थी ! मैं उनको मुखाग्नि न दे सका यही वजह है कि मुझे आज भी यही महसूस होता है कि वो आज भी जिन्दा है ! निदा फ़ाज़ली साहब की ये नज़्म उनको समर्पित !!  

तुम्हारी कब्र पर मैं
फ़ातेहा पढने नहीं आया

मुझे मालूम था , तुम मर नहीं सकते
तुम्हारी मौत की सच्ची खबर
जिसने उड़ाई थी , वो झूठा था ,
वो तुम कब थे ?
कोई सूखा हुआ पत्ता , हवा में गिर के टूटा था !

मेरी आँखे
तुम्हारी मंजरों में कैद हैं अब तक
मैं जो भी देखता हूँ , सोचता हूँ
वो , वही है
जो तुम्हारी नेक-नामी और बद-नामी की दुनिया थी !

कहीं कुछ भी नहीं बदला ,
तुम्हारे हाथ मेरी उँगलियों साँस लेते हैं
मैं लिखने के लिए जब भी कागज कलम उठाता हूँ
तुम्हें बैठा हुआ मैं अपनी कुर्सी में पाता हूँ !

बदन में मेरे जितना भी लहू है ,
वो तुम्हारी लगजिशों नाकामियों के साथ बहता है ,
मेरी आवाज़ में छुपकर तुम्हारा जेहन रहता है ,
मेरी बीमारियों में तुम मेरी लाचारियों में तुम !

तुम्हारी कब्र पर जिसने तुम्हारा नाम लिखा है ,
वो झूठा है , वो झूठा है , वो झूठा है ,
तुम्हारी कब्र में मैं दफ़न तुम मुझमें जिन्दा हो ,
कभी फुरसत मिले तो फातेहा पढने चले आना !

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