Thursday, June 26, 2014

सुनो, तुम्हेँ याद है बस स्टैंड का वो सुनसान कोना - 'सोनाली' बोस

सुनो,
तुम्हेँ याद है
बस स्टैंड का वो सुनसान कोना
और वहाँ पड़ी लकड़ी की वो पुरानी सी बेंच,
जहाँ कई घंटे हम यूँही काट देते थे?
तुम सिगरेट के धुँए के साथ
मैँ एक अदद कॉफी की प्याली मेँ खोई
ना जाने दुनिया जहान को
किस अन्दाज़ से तुम
अपने आसपास जमा कर लेते थे।


और मै तुम्हारे लफ्ज़ोँ के कारवाँ मेँ खोई,
थाम तुम्हारा हाथ कहीँ दूर
बहुत दूर निकल जाती थी।
आज फिर तुम्हारी कमी
महसूस हो रही है।
और जानते हो?
मैँ उसी बेंच पर बैठी
एक कॉफी के प्याले के साथ
तुम्हारे शब्दोँ के काफ़ीले को
तलाश रही हूँ।
यादेँ धुआँ धुआँ बन
मुझे अपने आगोश मेँ ले रही हैँ।
डरती हूँ कहीँ गुम ना हो जाउँ.....
और जानते हो,
थामने को अब तुम्हारी हथेली भी तो नहीँ...... ।

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