Friday, June 6, 2014

मन रे तुम पर क्या वश अपना - कृष्ण मुरारी पहारिया

मन रे तुम पर क्या वश अपना
यहाँ-वहां बिन मोल बिके हो
मुझे हो गए सपना

कली-कली पर मर मिटते हो
फूल-फूल मंडराते
पीछे-पीछे भाग रहा हूँ
हाथ न मेरे आते
एक नशा तुम पर छाया है
होश गवां बैठे हो
मैं जैसे हो गया पराया
मुझ से यों ऐंठे हो 

मेरे कर में शेष रह गया
नाम तुम्हारा जपना

रंग-बिरंगी छायाओं ने
तुमको मोह लिया है
कहाँ-कहाँ हैं ठौर-ठिकाना
इतना टोह लिया है
धरम-करम की बिक्री वाले
पीछे पड़े तुम्हारे
भाव तुम्हारे बहुत बढ़ गये
तुम जीते हम हारे

अब तो नाम तुम्हारा लेते
मुझे पड़े है कंपना

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