Tuesday, June 3, 2014

मन तुम ठस दिमाग के होते - कृष्ण मुरारी पहारिया

मन तुम ठस दिमाग के होते
लपट उगलते इस सागर में
कभी न खाते गोते

तुम संवेदन शील कवि हुए
यह अपराध तुम्हारा
इसीलिए व्यक्तित्व तुम्हारा
कदम-कदम पर हारा
भाव-ताव करने में तुमको
लाज लगे है भारी
चुगली और प्रशंसा -गायन
में मरती महतारी

जब-जब अवसर मिला, रहे तुम
भरी नींद में सोते

अब भी चेतो शेष उमर में
सीखो ढंग सयाने
बड़े मिलें तो लगो मंच पर
अपनी पूंछ हिलाने
नज़र घुमा लो , उधर न देखो
जिसको कहते जनता
दीन -धरम का सौदा कर लो
अगर काम हो बनता

वरना फिरते हैं तुम जैसे
गली-गली में रोते


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