Thursday, June 26, 2014

इन कमबख्त ख़्वाबों ने - सुलक्षणा दत्ता

1.
इन कमबख्त़ ख़्वाबों ने
सूली पे चढ़ा रखा है
रात /लम्हा लम्हा
बीतती जाती है
दिन की दस्तक
जाने सुन पाऊं कि नहीं
कल किसने देखा
मिल पाऊं कि नही 

2.
ना कल का भरोसा
ना काल का...
जो मिलना है
यही है बस क्षण
इस क्षणभंगुर में .......
'टपक गये'तो सीधे
तेरे मुंह समायेंगे.........
आ जा / खा जा ......
या .......मिल जा .......!

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