Tuesday, September 23, 2014

खिड़की पर आँख लगी देहरी पर कान - सोम ठाकुर

खिड़की पर आँख लगी देहरी पर कान
धूप भरे सूने दालान
हल्दी के धूप भरे दालान

पर्दों के साथ-साथ उड़ता है
चिड़ियों का खंडित-सा छायाक्रम
झरे हुए पत्तों की खड़-खड़ में
उगता है कोई मन-चाहा भ्रम
मंदिर के कलशों पर
ठहर गयी -
सूरज की काँपती थकान
धूप भरे सूने दालान

रोशनी चढ़ी सीढ़ी-सीढ़ी
डूबा मन
जीने के मोड़ों को
घेरता अकेलापन
ओ मेरे नंदन !

आँगन तक बढ़ आया-
एक बियावान.

 

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