Friday, September 26, 2014

सुबह छूटी शामें साधते रहे हम तुम - नईम

सुबह छूटी
शामें साधते रहे हम तुम

धुन्धवाते सूरज रात-दिन
तापते रहे हम तुम

मंझली माँ संझली दी
बड़की भौजाई
बजरे बूढर ,  सांवरे पिता
बड़े भाई !
देवता सिराने
आराधते रहे हम तुम !

छाती पर धरी हुई
क्वारीं आशायें
ब्याही कम
ज्यादातर उम्ररसीदायें
लक्षमन रेखाओं से
बांधते रहे हम तुम









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