Wednesday, September 3, 2014

मौन शब्द कागज़ पर उतरते ही बोलने लगते हैं - सुमित्रा पारीक

मौन शब्द कागज़ पर उतरते ही बोलने लगते हैं
चुप भी कब रहते जब भीतर रहते हैं
जितनी मन की रफ़्तार उतना ही
शब्दों का सफ़र तय है
एक तयशुदा काम कर के
संतुष्ट होना
कुछ नहीं कह के भी जीतना है खुद से
मेरे शब्द भी समझा नहीं पाते तुम्हें
और खोमोशियाँ भी
कमी मुझमें है या
इस खोखले होते जोड़ में
वो यकीन बेशक मुर्दा हो जाता है जब
जीवन की बांसुरी से
फूँक मारने पर भी सुर नहीं
सनसनाहट या सीटियाँ
सुनाई देती ....जो कानों को
खीचती है अन्दर की ओर
कि बस अब न सुनो !!
और न ही सुनाने का प्रयास करो
शायद कभी मौन के खाली
खेत में, शब्द अंकुरित हो
और खुशियों की फसल
लहलहाए .........

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