Tuesday, September 30, 2014

"बहुत अच्छी लगती हैं मेंड़ें खेतों की सचाई के लिए, - रमेश रंजक

"बहुत अच्छी लगती हैं मेंड़ें
खेतों की सचाई के लिए,

कितनी प्यारी लगती हैं कुर्सियाँ
भलाई के लिए,

बहुत मौजूँ लगती हैं दीवारें
घरों की सुरक्षा के लिए

बहुत भली लगती हैं खाइयाँ
किलों के आस-पास,

कितनी सुन्दर लगती हैं घाटियाँ
तराई के लिए

लेकिन...
ये मेड़ें, ये कुर्सियाँ, ये दीवारें...
मुझे हरगिज मंजूर नहीं
आदमी और आदमी के बीच..."

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