Tuesday, September 30, 2014

हँसना सुकून दे औ' न रोना सुकून दे ! - प्रोफे. राम स्वरुप 'सिन्दूर'

हँसना सुकून दे औ' न रोना  सुकून दे !
मुझको, मेरा वजूद न होना सुकून दे !!

आँखों से कूच कर गये ख़्वाबों के काफ़िले ,
पूरे सुकून में भी न सोना,  सुकून दे !

एक नूर की तलाश है गर्दो-गुबार में ,
अब चाँदनी का साथ न होना, सुकून दे !

यारब ! मैं आ गया हूँ कहाँ किस मक़ाम पर ,
मुझको तो अब सुकून न होना , सुकून दे !

कब से मुझे तलाश है उस बेक़रार की ,
जिसको मेरा सुकून में होना , सुकून दे !

हद से गुजर गये हैं हकीक़त के दायरे ,
आखों में कोई ख़्वाब न होना सुकून दे ! ,

बातें हुआ करें तमाम कायनात से ,
अपने से कोई बात न होना सुकून दे !

'सिन्दूर' की दुश्मन है ये दुनिया , तो क्यों इसे,
'सिन्दूर' का तबाह न होना , सुकून दे !

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