Sunday, May 11, 2014

धूप हुई तो आंचल बन कर कोने-कोने छाई अम्मा, - आलोक श्रीवास्तव

धूप हुई तो आंचल बन कर कोने-कोने छाई अम्मा,
सारे घर का शोर-शराबा, सूनापन तनहाई अम्मा.

सारे रिश्ते- जेठ दोपहरी, गर्म-हवा, आतिश, अंगारे,
झरना, दरिया, झील, समंदर, भीनी-सी पुरवाई अम्मा.

उसने ख़ुद को खोकर मुझमें एक नया आकार लिया है,
धरती, अंबर, आग, हवा, जल जैसी ही सच्चाई अम्मा.

घर में झीने रिश्ते मैंने लाखों बार उधड़ते देखे,
चुपके-चुपके कर देती है, जाने कब तुरपाई अम्मा.

बाबूजी गुज़रे आपस मैं सब चीज़ें तक़्सीम हुईं, तब-
मैं घर में सबसे छोटा था, मेरे हिस्से आई अम्मा.

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