Thursday, May 15, 2014

टूटे आस्तीन के बटन , या कुर्ते की खुले सियन , - उमाकांत मालवीय

टूटे आस्तीन के बटन ,
या कुर्ते की खुले सियन ,
कदम-कदम पर मौके याद तुम्हें करने के
आठ पहर
एक यही काम रहा ले-दे-के !

फूल नहीं बदले गुलदस्तों के
धूल मेज़पोश पर जमी हुई ,
जहाँ-तहां पड़ी दस किताबों पर
घनी-सी उदासियों थमी हुई ;

पोर-पोर टूटता बदन ,
कुछ कहने-सुनने का मन ,
कदम-कदम पर मौके याद  तुम्हें करने के
आठ पहर
एक यही काम रहा ले-दे-के !

अरसे से बदला रुमाल नहीं
चाभी क्या जाने रख दी  कहाँ ,
दरपन पर सिन्दूरी छींट नहीं
चीज नहीं मिलती रख दी जहाँ ;

चौके की धुआंती घुटन ,
सुग्गे की सुमिरिनी रटन ,
कदम-कदम पर मौके याद तुम्हें करने के
आठ पहर
एक यही काम रहा ले-दे-के !




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