Thursday, May 8, 2014

आधी-आधी रात प्रणय का ज्वार उठे ! - रवीन्द्र 'भ्रमर'

आधी-आधी रात
प्रणय का ज्वार उठे !
एक चंद्रमा
लहरों में सौ-बार उठे !

मौसम देता हांक अटपटी चाल की ,
अब डोरियाँ खिंची सपनों के पाल की ,
गहरे उद्वेलन में नैया डोलती
दोनों हाथों
पूजा की पतवार उठे !

वरुण देश की हवा गूंजती कान में ,
मोहन-मन्त्र फूंक जाति है प्राण में ,
रूप तरंगें राग-वलय रच जाती  है
जल-दर्पण में
प्रिय की छवि साकार हो उठे !

चुनमुन चिड़िया दूर विजन में बोलती ,
सगुनबांचती , भेद हिया का खोलती ,
क्या इस सिकता-तट पर पाहून आयेंगे
आँख फडकती ,
दिल में दूना प्यार उठे !

कहीं रतजगा मछुआरों के गाँव में
वंशी गूंज रही तारों की छांव में ,
नाच रहीं हैं छायाएं अभिसार की
लहर-लहर पर
नूपुर की झनकार उठे !

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