Saturday, May 31, 2014

मन रे अब मीठा मत खाना - कृष्ण मुरारी पहारिया

मन रे अब मीठा मत खाना
मीठी चीज सदा अवगुन है
पर तुमने कब माना

मीठी-मीठी बात किसी की
फ़ौरन ठग लेती है
मीठी छुरियो ने हरदम
गर्दन तेरी रेती है
मीठा विष भी होता है
कहतीं ऐसी कविताएँ
मीठेपन के इससे बढ़कर
गुन तुमसे क्या गायें

फिल्म-कथा जैसी-तैसी भी
मीठा होता गाना

वैद्य, डॉक्टर सदा विरोधी
है मीठी चीजों के
जिससे रोग पनपते देखे
ऐसे उन बीजों के
नेता, उपदेशक मीठे
वचनों की शिक्षा देते
मीठे सपने बेच जगत को
जो चाहे हर लेते

मधुमेही का रोग उसे
अक्सर रहता अनजाना

No comments:

Post a Comment