Saturday, May 10, 2014

मैं ढूंढता हूं जिसे वह जहां नहीं मिलता - कैफ़ी आज़मी

पुण्यतिथि / कैफ़ी आज़मी (10 मई)
जो दिल की राह से गुज़री है वो बहार हो तुम !
बीसवी सदी के महानतम शायरों में एक कैफ़ी आज़मी को आधुनिक उर्दू शायरी का बादशाह कहा गया है। वे अपने आप में एक  व्यक्ति न होकर एक पूरा युग थे जिनकी रचनाओं में उनका समय अपनी तमाम खूबसूरती और कुरूपताओं के साथ बोलता नज़र आता है। । एक तरफ उन्होंने आम आदमी के दुख-दर्द और संघर्षों को शब्दों में जीवंत किया तो दूसरी तरफ सौंदर्य और प्रेम की नाज़ुक संवेदनाओं को ऐसी बारीक अभिव्यक्ति दी कि पढ़ने-सुनने वालों के मुंह से बरबस आह निकल जाती है। उनकी ग़ज़लों और नज़्मों के कुछ चर्चित संकलन हैं - झंकार, आख़िरे शब, सरमाया, आवारा सज़दे, कैफ़ियत, और नई गुलिस्तां। कैफ़ी साहब साहिर लुधियानवी और शकील बदायूनी की तरह उन गिनेचुने शायरों में थे जिन्हें अदब के साथ फिल्मों में भी अपार सफलता और शोहरत मिली। उनके लिखे सैकड़ों गीत हमारी फिल्म धरोहर का अनमोल हिस्सा हैं। जिन फिल्मों में उन्होंने गीत लिखे उनमें प्रमुख हैं - शमा, गरम हवा, शोला और शबनम, कागज़ के फूल, आख़िरी ख़त, हकीकत, रज़िया सुल्तान, नौनिहाल, सात हिंदुस्तानी, अनुपमा, कोहरा, हिंदुस्तान की क़सम, पाक़ीज़ा, उसकी कहानी, सत्यकाम, हीर रांझा, हंसते ज़ख्म, अनोखी रात, फ़रार, बावर्ची, अर्थ, फिर तेरी कहानी याद आई आदि। उन्होंने फिल्म हीर रांझा, गरम हवा और मंथन के लिए संवाद भी लिखे थे। इस विलक्षण शायर और गीतकार की पुण्यतिथि पर हमारी हार्दिक श्रधांजलि, उनकी लिखी एक ग़ज़ल के साथ !


मैं ढूंढता हूं जिसे वह जहां नहीं मिलता
नयी ज़मीन नया आसमां नहीं मिलता

वो तेग मिल गई जिससे हुआ है क़त्ल मेरा
किसी के हाथ का उस पर निशां नहीं मिलता

वह मेरा गांव है, वो मेरे गांव के चूल्हे
कि जिनमें शोले तो शोले धुआं नहीं मिलता

जो इक ख़ुदा नहीं मिलता तो इतना मातम क्यों
यहां तो कोई मेरा हमज़बां नहीं मिलता

खड़ा हूं कब से मैं चेहरों के एक जंगल में
तुम्हारे चेहरे का कुछ भी यहां नहीं मिलता

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