Thursday, May 15, 2014

यह मधुर मधुवंत वेला मन नहीं अब है अकेला , - वीरेन्द्र मिश्र

यह मधुर मधुवंत वेला
मन नहीं अब है अकेला ,
स्वप्न का संगीत ,
कंगन की तरह खनका !

साँझ रंगारंग है यें ,
मुस्कराता अंग है ये ,
बिन बुलाये आ गया
मेहमान यौवन का !

प्यार कहता है डगर में ,
बह नहीं जाना लहर में ,
रूप कहता झूम जा ,
त्यौहार है तन का !

घट छलक कर डोलता है ,
प्यास के पट खोलता है ,
टूट कर बन जय निर्झर ,
प्राण पहन का !

No comments:

Post a Comment