Tuesday, May 20, 2014

भीतर क्यों तूफ़ान उठा है ! बाहर कुछ तो नहीं हुआ है !! - प्रोफे. राम स्वरुप 'सिन्दूर'

भीतर क्यों तूफ़ान उठा है !
बाहर कुछ तो नहीं हुआ है !!

कमरे का दरपन क्या देखूं ,
मेरा क़द ही बहुत बड़ा है !

दरपन सच देखते-दिखाते ,
अंधा होने-को आया है !

मार वक़्त की पड़ती है तो ,
तिनका भी न साथ देता है !

मैं भी धोखा , तू भी धोखा ,
आख़िर सच दुनिया में क्या है !

शेष रह गयीं कितनी साँसे ,
सर्वज्ञों को भी न पता है !

तुझे ढूढ़ कर हार गया मैं ,
तू मुझ में सिर-तक डूबा है !

आत्म-कथा 'सिन्दूर' लिखे क्यों ,
ग़ज़लों में क्या नहीं कहा है !

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