Sunday, May 18, 2014

हद से गुज़री बेकरारी को क़रार आने लगा ! - प्रोफे. राम स्वरुप 'सिन्दूर'

हद से गुज़री बेकरारी को क़रार आने लगा !
एक अरसे बाद , मैं ताज़ा ग़ज़ल गाने लगा !

जिसके दिल में मेरे दिल की धड़कनों का वास है ,
मेरी आहट सुन-के वो कोपल-सा थर्राने लगा !

वक़्त ने यों-तो उतारे तार मेरी साँस के ,
बेसुरा गा-कर भी मैं , ख़ुद को बहलाने लगा !

प्यार का सैलाब मुझको घाटियों में ले गया ,
एक झरने की तरह दिल मेरा लहराने लगा !

मैं तो उस बहके हुये को राह पर ला कर रहा ,
छल-कपट से वो ही मुझको यार ! बहकाने लगा !

इन दिनों मेरा अज़ब-सा हाल हो कर रह गया ,
दुश्मनों का हाल सुन कर अश्क भर लाने लगा !

तू जहाँ पर है वहां मैं आ ही जाऊंगा कभी ,
मैं अभी से ही तेरा 'सिन्दूर' कहलाने लगा !

No comments:

Post a Comment