Tuesday, April 1, 2014

जैसे कभी पिता चलते थे, वैसे ही अब मैं चलता हूँ ! - रचनाभिमुख कवि भारत भूषण

जैसे कभी पिता चलते थे,
वैसे ही अब मैं चलता हूँ !

भरी सड़क पर बायें-बायें
बचता-बचता डरा-डरा-सा,
पौन सदी कन्धों पर लादे
भीतर-बाहर भरा-भरा सा,

जल कर सारी रात थका जो
अब उस दीये-सा मैं जलता हूँ !


प्रभु की कृपा नहीं कम है ये
पौत्रों को टकसाल हुआ हूँ,
कुछ प्यारे भावुक मित्रों के
माथे लगा गुलाल हुआ हूँ ,

'मिलनयामिनी' इस पीढ़ी-को
सौंप स्वमं बस वत्सलता हूँ !

कभी दुआ-सा कभी दवा-सा
कभी हवा-सा समय बिताया,
संत-असंत रहे सब अपने
केवल पैसा रहा पराया,

घुने हुये सपनों के दाने,
गर्म आंसुओं में तलता हूँ !!

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