अमराई अब गमक रही है , बौर नहीं बारूद से
तोड़ रहे हैं अमिया चोट्टे , सर कच्चे अमरुद से
कान पकड़ कर चपत लगाते , भले-बुरे की देते सीख
माली का यह फ़र्ज़ तो पूछे , कोई उस मरदूद से
पनपे बेर , करील , करौंदें , फूल रही है नागफनी
नरियल , आम , आँवला , महुआ हुए नेस्तोनाबुत से
सूख रहा है नेह नदी का निर्मल , कल-कल करता जल
दोनों ओर पाट रेतीले , बढ़ते जाते सूद से
पंछी कलरव भूल जा छिपे , अपने-अपने नीड़ में
आतंकित होकर उस काले क्रूर कराल वजूद से
तोड़ रहे हैं अमिया चोट्टे , सर कच्चे अमरुद से
कान पकड़ कर चपत लगाते , भले-बुरे की देते सीख
माली का यह फ़र्ज़ तो पूछे , कोई उस मरदूद से
पनपे बेर , करील , करौंदें , फूल रही है नागफनी
नरियल , आम , आँवला , महुआ हुए नेस्तोनाबुत से
सूख रहा है नेह नदी का निर्मल , कल-कल करता जल
दोनों ओर पाट रेतीले , बढ़ते जाते सूद से
पंछी कलरव भूल जा छिपे , अपने-अपने नीड़ में
आतंकित होकर उस काले क्रूर कराल वजूद से
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