Wednesday, April 23, 2014

अमराई अब गमक रही है , बौर नहीं बारूद से - डॉ. रेनू चंद्रा

अमराई अब गमक रही है , बौर नहीं बारूद से
तोड़ रहे हैं अमिया चोट्टे , सर कच्चे अमरुद से

कान पकड़  कर चपत लगाते , भले-बुरे की देते सीख
माली का यह फ़र्ज़ तो पूछे , कोई उस मरदूद से

पनपे बेर , करील , करौंदें , फूल रही है नागफनी
नरियल , आम , आँवला , महुआ हुए नेस्तोनाबुत से

सूख रहा है नेह नदी का निर्मल , कल-कल करता जल
दोनों ओर पाट रेतीले , बढ़ते जाते सूद से

पंछी कलरव  भूल जा छिपे , अपने-अपने नीड़ में
आतंकित होकर उस काले क्रूर कराल वजूद से

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