Friday, April 18, 2014

कोई मुझ से ऊपर मन से मिलता है तो मिला करे - प्रोफे. राम स्वरुप 'सिन्दूर'

वो जो ख़ुद बच्चा जैसा है
मुझको बच्चा कहता है !
उसने मेरे पत्थर दिल को
झरना  होते  देखा  है !

मैं कुछ कहना चाहूँ तो वो
होंठों पर ऊँगली रख दे ,
उसने बहार-भीतर मुझको
अच्छे-से पढ़ रक्खा है !

ढाई-आखर पढ़ कर उसने
इन्द्रजीत को जीत लिया ,
वो मेरे मुँह पर ही मुझसे
चाहे जो कह लेता है !

उसको खो कर-के खोया है
अपना भी वुजूद मैंने ,
दुनिया के नक़्शे से मेरा
नामो-निशां मिट गया है !

कोई मुझ से ऊपर मन से
मिलता है तो मिला करे ,
मिलता है 'सिन्दूर' किसी से
पूरे मन से मिलता है !

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