पंथ पर विश्वास मेरा हो गया दृढ़तर
तुम्हारा साथ पा कर !
मौन गलियां जी उठी हैं आहटों के नाद से ,
अर्थ-साँकल खुल गई है शब्द के उन्माद से ,
द्वार का आतिथ्य अनुपम मिल गया जी-भर !
तुम्हारा साथ पा कर !
दिन वसन्ती लौट आये गंध के परिवार से ,
सगुन-पंक्षी फड़फड़ाये नीड़ के परिवार से ,
खुल गए कुछ मर्म मन के गीत सुन-सुन कर !
तुम्हारा साथ पा कर !
बात कस्तूरी समायी अनकहे संवाद में ,
आस्था फिर गुनगुनायी मिलन के आहलाद में ,
प्रीति के संस्पर्श से फिर बस गया है घर !
तुम्हारा साथ पा कर !
तुम्हारा साथ पा कर !
मौन गलियां जी उठी हैं आहटों के नाद से ,
अर्थ-साँकल खुल गई है शब्द के उन्माद से ,
द्वार का आतिथ्य अनुपम मिल गया जी-भर !
तुम्हारा साथ पा कर !
दिन वसन्ती लौट आये गंध के परिवार से ,
सगुन-पंक्षी फड़फड़ाये नीड़ के परिवार से ,
खुल गए कुछ मर्म मन के गीत सुन-सुन कर !
तुम्हारा साथ पा कर !
बात कस्तूरी समायी अनकहे संवाद में ,
आस्था फिर गुनगुनायी मिलन के आहलाद में ,
प्रीति के संस्पर्श से फिर बस गया है घर !
तुम्हारा साथ पा कर !
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