Monday, April 21, 2014

पेड़ से हम अलग टूटी डाल है ! - यश मालवीय

पेड़ से हम अलग
टूटी डाल है !
या-कि टूटी
पत्तियों का ताल  हैं  !

पात टूटे , टूटती बौछार हो मन-प्राण टूटे ,
कुछ भले हो नहीं मिटते याद के वो बेलबूटे ,
हम कि अपनी
मुक्ति का ही जाल हैं !

है सदा हक़ में हमारे मौसमों का यह बदलना ,
व्यवस्था का बदल जाना और गिर-गिर कर संभालना
बहुत अच्छा है
कि हम बेहाल है !

सुनो, पीली पत्तियों की बारिशों का शोर जागे ,
शाम जागे , दोपहर जागे कि कच्ची भोर जागे ,
हम चड़ाई हैं ,
कि हम ही ढाल हैं !

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