Thursday, April 24, 2014

सुनो मैं अपने हाथो में कलम लिए लिए हजारो मील चल सकता हूँ - वीरू सोनकर


सुनो
मैं अपने हाथो में
कलम लिए लिए
हजारो मील चल सकता हूँ
सोच सकता हूँ
जहाँ भी मन आये
बैठ कर लिख सकता हूँ
मुझे कोई फर्क नही
अगर तुम मेरी तरफ देखो भी न,
मेरे लिखे को सराहो भी न,
तुम मेरे काव्य की चर्चा भी न करो


अपनी चौपालो पर,
मुझे तुमसे कोई लेना देना नही
क्युकी
मेरा लिखना
या सोचना
तुम्हारी तवज्जो का मोहताज नही
मैं तो बस
इस लिए लिखता हूँ
की कोई
थकी हारी
मजदूरनी
रात को
अपने बच्चे को
मेरे गीत सुना कर सुला सके
कोई प्रेमी
अपनी विरह के अकेलेपन में
मुझको अपने संग पा सके
कोई बच्चा
मेरे गीतों में
अपने सपने पा सके
कोई शिक्षक
मेरे गीतों से
अपने विद्यार्थियों को
सच कहना सिखा सके,
तो सुनो तुम
अगर तुम इनमे से कोई नहीं हो
तो मेरे गीतों से दूर रहो
मैं अभी
और चलूँगा
अपनी कलम के साथ
नंगे पैर
कड़ी धूप में,
मैं अभी
और बहुत सा सोचूंगा
खूब खूब लिखूंगा.............

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