Wednesday, April 23, 2014

दर्द जब बाँधा , उभर आया - रमेश 'रंजक'

दर्द जब बाँधा , उभर आया
गीत से पहले तुम्हारा नाम आया !

कुलमुलाये  छन्द के पंछी ,
छा गयी जब धूप हल्की-सी ,
ओढ़ युग जो सो रहीं बातें
लग रहीं अब , आजकल की-सी
याद टूटे स्वप्न भर लायी
जो किये थे वक़्त ने नीलाम !

खोल दी खिड़की हवाओं ने ,
उम्र-सी पायी व्यथाओं ने ,
व्योम-भर अपनत्व दरसाया
बाँह में भर-भर दिशाओं ने ,
चार मोती बो गयी दृग में
रात से पहले निगोड़ी शाम !

चल रही ज़िन्दगी पथ पर ,
पीठ पर लादे हुए पतझर ,
क्या पता कब दीप बुझ जाये
औ' निगल जाये अँधेरा: स्वर ,
कामना इतनी कि पा जाऊं
स्वर्ग से पहले तुम्हारा धाम !

No comments:

Post a Comment