Thursday, April 24, 2014

सुनो ! वैदेही कुछ तो बोलो - दिव्या शुक्ला

सुनो ! वैदेही कुछ तो बोलो
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न जाने कितनी मनौतियों मांगी देवी मईया से
बहुत अनुनय विनय की थी बाबा नें
तब कहीं जन्मी थी वैदेही ---दुनिया में आते ही -
बंदूकें दाग कर स्वागत हुआ था उसका
लोग जलभुन कर बोले भी --छठी मनाये हैं
मानो कुलदीपक जन्मा हो ---पराई अमानत है
इतना दुलार ---कभी कभी माँ झुझला भी जाती --
बोलती सुनो ! कहाँ ब्याहोगे इतना न बिगाड़ो दुलार से
बाबा ठठा कर हँसतें राजकुमारी है मेरी
उसे क्या जरूरत कुछ सीखने की ----
राजकुमार खुद से मांग कर ले जायेगा ---
---और हुआ भी यही ---एक दिन आया
बाबा बीमार हुये सबसे ज्यादा फिकर हुई
अपनी लाड़ली की तेरह चौदह साल की ही हुई थी


रिश्ता भी आ गया खुद चल कर ------
---घर वर दोनों ही मन मुताबिक ------
वैदेही का रघुवीर से नाता जुड ही गया
गुड़िया और सखियों के साथ गुट्टे खेलने की उम्र में
सात फेरे हुये ---वो बस यही सोच कर खुश थी
अब पता चलेगा माँ को ---बहुत डांटती थी न --
अब जाओ याद करो मुझे ---न गहने का मोह न कपड़ों का
ससुराल में माँ से भी प्यारी सासू माँ ---हर भूल छुपा लेती वो
पर जिसे समझना था वो तो समझ ही नहीं पाया ----
उसके लिये तो घर की तमाम कीमती चीजों की
तरह ही थी वो --बस एक कीमती समान
उसका बचपना मासूमियत सब गुम होती गई
वो चुप सी हो गई --आँखों में सूनापन भर गया
बाबा आते मिलने सीने से लगा कर प्यार करते
खूब रोती ---क्यूं भेजा इनके घर ले चलो वापस
कैसे बताती वो --क्या बताती ----
दो व्याघ्र जैसी आँखे हरपल उसके इर्दगिर्द घूमती रहती हैं
मौका मिलते ही दो पंजे उसे दबोचने को तैयार रहते हैं
कैसे बताती अपने जनक से ---उनकी वैदेही अपने ही घर में
असुरक्षित है अपनों से ही ---डरती है ---नींद में चौक जाती है -----
नींद खुल जाती है किसी लिजलिजे से स्पर्श से
और एक साया तेजी से बाहर जाता दिखता है
वो साया जिसे वो पहचानती है --- बोल नहीं सकती
कौन सुनेगा उसकी यहाँ --वो भी नहीं
जिसने रक्षा के वचन भरे थे ----किंकर्तव्यविमूढ हो गई
कैसे बताती वो --बाबा तुमने कैसा वर ढूंढा --
जो प्यार नहीं पैसा पहचानता है ---------
जो सब जान कर अनजान बना रहता है
----क्या बोले वैदेही ---यहाँ औरतों का बोलना मना है
क्या बताये ये विवाह एक समझौता है ---
बाबा तुम्हारे रुतबे से -----मौन रही वैदेही बरसों तक
लेकिन कब तक ---सब कहते सब पूछते
बोलो वैदेही कुछ तो बोलो मौन क्यूं कब तक ??
--बाबा की गीली आँखे पूछती चुप क्यूं हो वैदेही ? -----चुक गया धैर्य
चीख पड़ी ---फूट फूट कर रोई बाबा के सीने से लग
नहीं अब और नहीं ---इस बार नहीं दोहराई जायेगी प्रथा
और वैदेही नें ---रघुवीर का परित्याग कर दिया ---
शायेद यही नियति है ---हर युग में ---
बार बार यही गूंजता है मन में --
और कितने जनम लोगी वैदेही ----
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दूर कहीं कोई रामायण की चौपाई उच्चार रहा था
अनुज बधू भगनी सुत नारी
ये सब कन्या सम है चारी
इन्हें कुदृष्टि बिलोके जोई
---आगे की पंक्तियाँ
घंटे घड़ियाल में गुम होती गई -----

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